Wednesday, February 14, 2007

ह्र्दय की निर्जनता

किसी की याद
नही साथ आज,
विचारों के गलियारे भी सूने पडे |

आज नही खटखटाता कोई,
मेरे ह्र्दय का द्वार,
आज नही कोई जो ,
लगाये मुझको पूकार |

खीडकी से बाहर देखता,
अकेला मै उकता,
खींच देता हूं,
खीडकी का पर्दा |

सीर्फ खीडकी का ही नही,
मन का भी |
अब मेरे कमरे मे,
और मन मे कोई नहीं |

एक सन्नाटा सा,
गुंजता है वहां ऐसे ,
पूराना , उजडा, निर्जन,
कोई महल हो जैसे |

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