Wednesday, February 14, 2007

लोकगीत

एक दिवान, एक सोफासेट,चेयर्स,
छत पर लगा पंखा,
दिवार पर एक घडी, दो सीनरी,
एक दो पेंटिग्स,
कूलर के उपर स्टेंड मे एक टेपरीकार्डर,
इन सब से सज्जीत ड्राइंगरुम,
एक बोरीयत पैदा करता है,
उबाउ , एक जैसे पश्चिमी संगीत को सुनने जैसी |
और
तब याद आता है मुझे,
अपने दोस्त के गांव का घर |
वो घर,
जहां बरामदे में बस एक खाट होती है
और दिवार पर एकाधा केलेंडर |
मगर वो बरामदा
ड्राइंगरुम सी बोरीयत नही पैदा करता |
लोकगीत का मजा देता है |
"अफसोस, मेरा कोई घर गांव में नहीं |"

No comments: