अहसास की गोद मे फैला दी
मैने कागज़ की चादर ,
हाथ मे भर हवा मे उछाले
कुछ अक्षर, कुछ मात्राएँ |
बस महज़ इतना ही मैने
महज़ इतना ही किया था और..
..और दायी कलम उठ उन्है
कागज़ पर जन्माने लगी |
अहसास की गोद मे
चादर पर कुछ सतरें,
जन्मी और जन्मते ही
किलकारीयाँ भरने लगी|
अहसास शीथिल हो गये,
कलम बैठ गई किसी कौने,
मैं प्रेमिल हो देखता रहा,
जन्मी सुंदर सी रचना को |
Wednesday, February 14, 2007
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