Wednesday, February 14, 2007

सफर

उबासी लेता जब दिन उठा,
चहचहाये नीङ से परिंदे|
चुपके से मेरे ख्यालों मे तब,
तेरा ख्याल उतर आया ||

सर पर जब दिन चढ आया,
हो गई कुछ बोझील सी फिज़ा |
उदास मेरी सांसों से तब,
झोंका तेरी सांसों का टकराया ||

शाम तक जब दिन पहूंचा,
शर्म से लाल हो गई शाम |
कागज़ पर मेरी हाथों से तब,
तेरा ही नाम उतर आया ||

थक कर जब दिन सो गया,
अटखेलियाँ करती आयी रात |
चुपके से मेरे ख्वाबों मे तब,
तेरा अक्स झिलमिलाया ||

एसे ही ग़ुज़रता रहा वक्त,
एसे ही चलता रह सफर |
एसे ही मेरे उपर यारा,
जादू तेरा जादू रहा छाया |

No comments: