मौन रहो,
शायद तब तुम कह सको
वह जो शब्दातीत है
और तुम उसे कहना चाहते हो
असमर्थ हो किन्तु |
मौन रहो,
शायद तब तुम सुन सको
वह, जो श्रवणातीत है
और गुंजायमान है
तुम्हारे अंतस मे सतत |
मौन रहो,
शायद तब तुम समझ सको
सब वो व्यर्थ था
बौला था या सुना था
जो कुछ भी तुमने |
मौन रहो,
और समझो की कहा था
क्यो किसी शायर ने ऐसा ?
खामोशी खुद अपनी सदा हो,
ऐसा भी हो सकता है |
सन्नाटा भी गूंज रहा हो,
ऐसा भी हो सकता है ||
Wednesday, February 14, 2007
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