Wednesday, February 14, 2007

शब्द यज्ञ

ह्रदय के भाव
शब्द पाँखि से उड गये
आकर अधरों पर से,
और बिखर गये
विराट आकाशी ताङपत्र पर |

मैं देखता रहा
उन्है,
उनकी भव्य उडान को
आकाशी ताङपत्र पर हो रहे
उनके अनुष्टुपी कलरव को |

भाषा इसे
इस कलरव को
कविता कहती है |

और मैं
शब्द यज्ञ !

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