Friday, February 16, 2007

ओह रे मन

ओह रे मन क्यो कर तुने,
परदेसी संग प्रित लगाई |

आज आया है देस तेरे,
लौट जायेगा पर देर-सवेरे,
कैसे सह पायेगा तू उससे,
अपनी दूरी और ज़ूदाई ||

ना जाने है प्रेम वो तेरा ,
ना ही तुझसे पित है उसको,
सोच जरा ये एकाकी प्रेम,
है आखिर कितना दुखदाई ||

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