मुठ्ठी भर मुख को अपने हास दे दो |
झुठ ही सही , किन्तु मुझे देखते हो ,
मुझको यही एक मिथ्या आभास दे दो ||
ना हो पूर्ण किन्तु मुझको चाह यही है,
तुम मेरे जीवन को मधुमास दे दो ||
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मैने अपने लेखन को यज्ञ माना है | शब्द यज्ञ ! और इस यज्ञ मे मेरे सभी अपनो ने आहूति अर्पित की है | किन्तु ये यज्ञ मै समर्पित् करता हुँ अपने आई-बाबा को जिन्होने इसे हमेशा प्रजव्लित रखा | :- ऋषिकेश खोङके "रुह"
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