वक्त क्या कुछ सिखा देता है |
चांद को रोटि बना देता है ||
एक सच हम भी समझ गये है |
झूट आगे बडा देता है ||
सच और झूट का फर्क मत पुछो |
जी दहला देता है ||
कितना बदल गया है "रुह" |
खोटा सिक्का चला देता है ||
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मैने अपने लेखन को यज्ञ माना है | शब्द यज्ञ ! और इस यज्ञ मे मेरे सभी अपनो ने आहूति अर्पित की है | किन्तु ये यज्ञ मै समर्पित् करता हुँ अपने आई-बाबा को जिन्होने इसे हमेशा प्रजव्लित रखा | :- ऋषिकेश खोङके "रुह"
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