Thursday, February 15, 2007

अंगने चिडिया बैठ के

अंगने चिडिया बैठ के, बौली सुनो संदेस |
प्रित है हर-सू एक सी, भटकी इतने देस ||
एक आँख मे संसार है,एक आँख मे प्यार |
अब है मरजी आपकी जिसे भी दें विस्तार ||
सभी के अपने दुख है,कौन खाली हाथ |
बाँटिए अब दुख को अपने,जाकर किसके साथ ||
मैं भी यां खामोश हूं,और तू भी है मौन |
बूझ पहेली आँखो से, बौल रहा है कौन ||

1 comment:

Anonymous said...

I Like this very much....Specially line
बूझ पहेली आँखो से, बौल रहा है कौन ||