इश्क की परछाईयाँ |
दिल की तन्हाईयाँ ||
तन्हा राते,तन्हा दिन |
जीवन की उकताईयाँ ||
ठंडक है न खुशबु |
खाली हाथ पुरवाईयाँ ||
हुस्न नही,आह!हुस्न |
हुस्न की रुसवाईयाँ ||
उथली-उथली ग़ज़लें |
'रुह' की गहराईयाँ ||
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मैने अपने लेखन को यज्ञ माना है | शब्द यज्ञ ! और इस यज्ञ मे मेरे सभी अपनो ने आहूति अर्पित की है | किन्तु ये यज्ञ मै समर्पित् करता हुँ अपने आई-बाबा को जिन्होने इसे हमेशा प्रजव्लित रखा | :- ऋषिकेश खोङके "रुह"
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