ओह रे दाता,
ओह रे ये मन के बंध |
ओह ये परंपरा की गाँठे,
कृपा से जीनकी मानव,
हो उत्पन्न जन्मांध |
करो बंद वेद ओ गीता,
और शब्दों का व्यापार,
सत्यतः हो सत्य द्वन्द |
अंतस मे आये नव वायू,
खोलो पुरातन कपाट,
पडे है जो कब से बंद |
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1 comment:
Wah wah...Jawaab nahi aapka
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