Monday, February 19, 2007

पुरातन पुराण

फिर वही जमीं , फिर वही आसमान |
रोज रोज वही , फिर वही जहान ||

फिर वही सडकें, फिर वही जन,
फिर वही दिनचर्या, वही थकन,
फिर वही पुरानी संस्कृति ओ प्राण |

फिर वही नास्तिक ओ आस्तिक,
फिर वही क्रास , फिर वही स्वास्तिक,
फिर वही पूजा , फिर वही अजान |

फिर वही रिश्ते , फिर वही नाते,
फिर वही ब्राम्हण और शूद्र जातें,
फिर वह निचा और वह महान |

फिर वही सब कुछ, वही का वही,
कहीं कुछ बदला हो , लगता तो नहीं,
खत्म हो अब ये पुरातन पुराण |

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