Monday, February 19, 2007

वो मेरे पांव नही है

वो मेरे पांव नही है |
चलते हुए जो कभी न थके, वो मेरे पांव नही है


भटक रहा हूं मगर मैं आवारा बन बंजारा,
सहरा,जंगल,बस्ती,शहर और गांव मारा-मारा,
रुक कर कुछ देर आराम ही कर लेता मगर,
शायद किस्मत मे मेरी ऐसा कोई गांव नही है


चलते हुए जो कभी न थके, वो मेरे पांव नही है


रहे साथ हमेशा दर्द ही दर्द, ग़म ही ग़म ,
किस्मत की फिर भी हंसना ही पडा हरदम,
और भी मुझको तडपना है,जलना है,क्योकी,
धुप ही धुप है ज़िंदगी की राह मे, छांव नही है |


चलते हुए जो कभी न थके, वो मेरे पांव नही है

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