Wednesday, February 14, 2007

प्रार्थी भाव

रात का समय,
कडाके की ठंड,
जर्जर झोपडी,
अनचाहे छिद्रों की खीडकीयाँ,
हवा का प्रवेश, अनाधिकृत |

ठिठूरता बदन,
अंग कछुए की तरह,
स्वयं मे सीकोडता,
जैसे यूं ठंड रुक जाया करती है |

हथेलियों का घर्षण,
आग उत्पन्न करने का असफल प्रयास |

किसी कोने में घुस कर
सोने का प्रयास |

ह्र्दय मे उठता
एक प्रार्थी भाव...

हे भगवान
बङी ठंड है,
काश एक कंबल मिल जाता |

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