थकान लिपी
लिख दि अंगो पर,
दिन की दौङ-धूप ने शाम |
बोझील पलकें,
आलस्य,
थकावट का अनुभव,
क्षणिक सी पिङा
हल्का सा दर्द,
अंगो पर न जाने क्या-क्या
लिखा गया रात होते-होते |
अंततः
जब हो गया पूर्ण लेखन,
रात्री के अंधेरे ने
रख दिया अंगो को,
समय के आले मे,
निंद का आवरण चढा |
पूनश् प्रातः
लिखी जायेगी
कोई लिपी अंगो पर,
रोशनी के रबर से
थकान लिपी मिटा कर |
Wednesday, February 14, 2007
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