Monday, February 19, 2007

राष्ट् की दशा

एक दिन

हमारे एक मित्र

हमारे घर आये,

हमे देखा और फरमाये,

ये क्या हाल बना रखा है !

कुछ लेते क्यो नहीं !


मैने कहा

क्यों क्या हुवा |


वो बोले

क्या हुवा...

अरे ये शरीर है , या शरीर का अवशेष !


मैने कहा

इसमे क्या है विशेष ,

ऐसा तो है सारा देश ,

एक प्रकार से तो मैं देश का नक्शा हूं ,

और स्थिति मे देश से फिर भी अछा हूं |

2 comments:

Shishir Mittal (शिशिर मित्तल) said...

Accha hai!

Pleas rectify the spelling mistakes. They are plentifully present in the entire text.

I can help u if u wish, but I cannot type in hindi.

Good poem, anyways!

शोभा said...

बहुत अच्छा लिखा है पर मुझे लगता है मैने यह कविता सुनी है। हास्य लिखना अधिक कठिन
कार्य है जो आप बखूबी कर रहे हैं । बधाई