जहर तेरे इश्क का
पी लिया है मैने |
कमबख्त ! मौत मगर
आती ही नही ||
कर बेइज्जत मैने
दिया निकाल घर से |
कमबख्त ! ज़िंदगी मगर
जाती ही नही ||
गा मैने दिपक राग
जगा दिया आग को |
कमबख्त ! बदन को पर
जलाती ही नही ||
Thursday, February 15, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment