Wednesday, February 14, 2007

मैं कम्बख्त

मुद्दत हो गई लडते-लडते
किस्मत से अपनी,
मैं कम्बख्त मानता ही नहीं,
किस्मत है की जीतती ही जाती है |

मुद्दत हो गई लडते-लडते
बुरे वक्त से अपने,
मैं कम्बख्त सोचता हूं अब बदला,
आगे बढ जाता है,वक्त बदलता ही नही |

मुद्दत हो गई लडते-लडते
उलझे रीश्तों से अपने,
मैं कम्बख्त सुलझाता हूं जितना
रीश्ते उलझते जाते हैं |

मुद्दत हो गई लडते-लडते
वज़ूद से अपने,
मैं कम्बख्त बनाता हूं
जब भी वज़ूद अपना,
अपने वज़ूद को बिखरा-बिखरा पाता हूं |

मुद्दत हो गई लडते-लडते
खुद अपने आप से,
मैं कम्बख्त हारता ही नही,
मैं कम्बख्त !

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