छत पर खडे हो सुर्यास्त देखते जब
सहसा ही कोंधा विचार अंतरमन म
एक रोज़ सुर्यास्त देखने तू नही होगा |
आज यहां इस छत पर खडा है तू
कल यहां इसपे खडा होगा कोई और |
सोचा तब क्यों न कर दूं मैं अर्पित
एक अश्रुपूरित श्रद्दांजली स्वयं को
आ ही गया है स्मरण जब किसी बात का
Wednesday, February 14, 2007
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