Wednesday, February 14, 2007

सपने को साकार करने के लिये

झीनी-झीनी
मैने चदरीया बुनी,
कर दिन भर मेहनत,
बडे ही जतन से,लगन से |

अब खरीद लेगा
इसे मुझसे दलाल,
और दे देगा मुझे पैसे इतने
कि पक सके आज खाना,
रात दिया जल सके,
और वो खुद
बेच देगा चादर को इतना महंगा
कि उसका कुत्ता तक
खा सके मुझसे ज्यादा,
और घर क्या
चारदिवारी तक उसकी
रोशन हो जाये |

पर उसे चादर बेचना
मेरी मजबुरी है |
वो न खरीदे अगर,
खाना न पक सकेगा |

हाँलाकी मै
देखता हूं अक्सर सपने में
की दलाल का अब मैं मोहताज नही,
मेरे घर पर भी है पैसा ही पैसा
और मेरा कुत्ता
खाता है खाना दलाल से ज्यादा,
मेरी भी चारदिवारी है
और रोशन है |

इसीलिये जब सुबह होती है
तो मैं जुट जाता हूं
फिर काम में
एक नये उत्साह के साथ
अपने सपने को
साकार करने के लिये |

No comments: