Wednesday, February 14, 2007

आस्था रखो


आस्था रखो हवा पर
बहती अभी चाहे निराशा की हो,
अन्ततः आशा भी तो
इसी हवा पर
हो के सवार आएगी |

आस्था रखो धूप पर
क्यो न हो चाहे अभी
दुख की चिलचिलाती धुप,
अन्ततः उदासी के ठंडे दिनो मे
सुख यही धूप ही तो
लेकर आएगी |

आस्था रखो छाया पर
ग़म की काली छाया ही क्यो न हो,
अन्ततः चिलचिलाती दुख की धुप मे
झुलसती तुम्हारी आत्मा
खुशी के साये मे ही ठंडक पाएगी |

आस्था रखो मौसम पर
मौसम हो चाहे बुरे वक्त का,
अन्ततः बदलती रुत
अच्छा मौसम भी तो लाएगी |

आस्था रखो बस आस्था
अनास्था से
मानव जाति कब जी पायी , जी पाएगी

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