अली री क्या सुनती हो ये मधुर मोहीनी स्वर |
लगता है वन्शी पर कान्हा ने रख दिये अधर ||
अंग-अंग मे मेरे सर उठा रही है थीरकन,
वंशी की तान पर झुम रहा नागीन स तन ,
हो गया सखी जाने क्या जादू ये मुझ पर |
लगता है वन्शी पर कान्हा ने रख दिये अधर ||
उठ रही है मन मे मेरे मस्ती भरी तरंग,
जी चाहता है झुमू मैं भी सारी धरती के संग,
हाय ! उतावला इतना हो रहा मन क्यों कर |
लगता है वन्शी पर कान्हा ने रख दिये अधर ||
पूष्प मुस्कुराते हैं, पंछी भी चहचहाते हैं,
क्या व्रृक्ष,क्या पौधें,सब झुम के लहलहाते हैं,
आज उत्सव क्या ये चल रहा है धरा पर |
लगता है वन्शी पर कान्हा ने रख दिये अधर ||
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