तू रेगीस्तान की प्यास
बसी है मेरी इन आँखों मे
और जीवन के इस रेगीस्तान मे
भटकता हूं मैं तेरे लिये |
तेरी मृगतृष्णा !
की डुबता उतरता हूं
इस रेत के समंदर मे |
देख लहुलुहान है मेरा बदन
आशाओं की नागफनी गले लगा कर |
आह ! मैं मर क्यो नही जाता |
मगर नही ! मुझको जीना है और,
अभी तो भटकना है और,
इस रेत के समंदर मे
अपनी प्यास की खातिर |
अपनी रेगीस्तानी प्यास की खातिर |
Wednesday, February 14, 2007
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