जब आओगी तुम,
सोचता हूं तुमसे
ये कहूंगा मैं,
वो कहूंगा |
मगर
क्या हो जाता है ?
कि जब तुम आती हो,
मैं कुछ नही कह पाता |
Monday, February 19, 2007
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मैने अपने लेखन को यज्ञ माना है | शब्द यज्ञ ! और इस यज्ञ मे मेरे सभी अपनो ने आहूति अर्पित की है | किन्तु ये यज्ञ मै समर्पित् करता हुँ अपने आई-बाबा को जिन्होने इसे हमेशा प्रजव्लित रखा | :- ऋषिकेश खोङके "रुह"
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