Monday, February 19, 2007

सिगरेट

तेरी यादों का सिगरेट,
जला दर्द के लाइटर से,
सीने मे उतारता रहा,
गुज़रे हसीन लम्हे |

यादों की राख झडती रही |

जिंदगी की एश-ट्रे,
राख से भरती रही |

1 comment:

बसंत आर्य said...

कविता अच्छी है.धुए मे नही उडायी जा सकती आपकी कविता