Monday, February 19, 2007

रात भर

अगरबत्ती जलती रही रात भर,
रात भर उससे राख झडती रही |
फैलती रही महक कमरा-कमरा,
एक लकीर धुएँ की बनती रही |

रात भर जला कोई तेरी याद मे,
रात भर यादों की राख झडती रही |
महक गया तुझसे कमरा-कमरा,
एक लकीर यादों की बनती रही |

और वो खत्म हो गया सुबह तक,
तेरे लिये जलता रहा जो रात भर |

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