Monday, February 19, 2007

वाह अल्लाह

शाम एक फकीर गा रहा था,
दर्दो-ग़म मुझको दे दे अल्लाह |

पास ही चलती थी एक प्रार्थना,
ये दर्दो-ग़म कब तक अल्लाह |

और मैं बेठा सोच रहा था,
अजीब है ये दुनीया वाह अल्लाह |

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