ऐसा हो काश ! ऐसा ही हो काश |
वो ही हो , जब हो उसका आभास ||
खोलूं जब द्वार,ल कर आस,
न हो खंडित, मेरा ये विश्वास,
कि होगी वो ही ले मुख पर हास ||
प्रित मरु भटकूं ले कर प्यास,
दूर जल का सा होता है आभास,
म्रगतूष्णा न होगी है ये आस ||
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