काव्य-प्रिये तुम विमल,
नभ सी शुभ्र ओ निर्मल,
नभ सागर मे तैरती,
ओ हंसीनी पूर्ण धवल,
कमल सद्रुष्य सुंदर,
नव कोंपल सी कोमल,
मेरे काव्य की प्रेरणा,
जीवन,ह्र्दय एवं बल |
Wednesday, February 14, 2007
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मैने अपने लेखन को यज्ञ माना है | शब्द यज्ञ ! और इस यज्ञ मे मेरे सभी अपनो ने आहूति अर्पित की है | किन्तु ये यज्ञ मै समर्पित् करता हुँ अपने आई-बाबा को जिन्होने इसे हमेशा प्रजव्लित रखा | :- ऋषिकेश खोङके "रुह"
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