स्नेही मित्रों,
दिनांक २६ अक्टूबर २००७ को मेरे प्रथम काव्य संग्रह "शब्द यज्ञ" का लोकार्पण समारोह हिन्दी भवन (महादेवी वर्मा कक्ष) मे सम्पन्न हुआ | माननीय श्री देवेन्द्र दीपक जी (निर्देशक,म.प्र. साहित्य अकादमी) ने समारोह के मुख्य अतिथि होने का एवं माननीय श्री कैलाशचन्द्र पंत जी (महामंत्री, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति) ने समारोह के विशिष्ट अतिथि होने का सम्मान हमे दिया | कार्यक्रम की अध्यक्षता माननीय श्री राजेन्द जोशी (वरिष्ट पत्रकार एवं साहित्यकार) जी द्वारा की गई |
समारोह का संचालन श्रीमति साधना शुक्ला जी(सचिव, प्रखर 'सामाजिक,साहित्यक एवं सांस्कृतिक संस्था')द्वार किया गया साथ ही इस कार्यक्रम को सफल बनाने एवं इस काव्य संग्रह को पाठको समक्ष लाने मे भी श्रीमति साधना शुक्ला जी(सचिव, प्रखर) का अतुलनीय प्रयास रहा |
लोकार्पण समारोह का प्रारंभ दिप प्रज्वलन एवं सरस्वती वन्दना से किया गया तदोपरांत प्रखर संस्था द्वारा साहित्य जगत के अतिवरिष्ठ साहित्यकारों १. श्रीमती निर्मला जोशी २. श्री चन्दप्रकाश जायसवाल ३. श्रीमती शीला टंडन ४. कु. इअनिड जोब ५. श्री महेश सक्सेना ५. श्रीमती प्रमिला नवल का सम्मान श्रीफल एवं शाल द्वारा किया गया एवं इसके बाद मुख्य अतिथियों का भी श्रीफल एवं शाल द्वारा सम्मान किया गया |
"शब्द यज्ञ" का लोकार्पण मुख्य अतिथियों माननीय श्री देवेन्द्र दीपक जी , माननीय श्री कैलाशचन्द्र पंत जी ,माननीय श्री राजेन्द जोशी के द्वारा किया गया एवं एक प्रती मुख्य अतिथियों ने अपने हस्ताक्षर कर मुझे प्रदान की |
"शब्द यज्ञ" काव्य संग्रह की समिक्षा श्री हूकूम सिंह 'विकल' एवं श्रीमति शीला टंडन द्वारा की गई और मेरे इस संग्रह मे क्या अच्छा है और कहां सुधार की आवश्यक्ता है का मार्गदर्शन मुझे प्रदान किया |
श्री 'विकल' जी ने अपने सम्भाषण मे कहा की कवि अपनी भाषा से सम्मोहित करता है और उचित शब्दों का उचित स्थल पर कुशलता के साथ प्रयोग करता है , कवि भविष्य के लिये आशा प्रदान करता है किन्तु संग्रह मे प्रकाशन संबन्धी कुछ त्रुटिया रह गई है जो खटकती है |
श्रीमति शीला टंडन जी ने अपने सम्भाषण मे कहा की कवि मुलत: रहस्यवादी कविता का पोषक है किन्तु प्रेम , समाज की भी चिन्ता करता है और शब्दों की कुशलता से चादर बुनता है | कवि की कविता आपको मन की गहराईयों मे भी ले जाती है किन्तु प्रकाशन संबन्धी कुछ त्रुटिया रह गई है और कवि को क्लिश्ट शब्दों के प्रयोग से भी बचना चाहिये |
समिक्षा के उपरांत कार्यक्रम की संचालक श्रीमति साधना शुक्ला जी द्वार मुझसे काव्य पाठ करने को कहा गया और इस अवसर पर मैने अपनी कुछ कविताये १. शब्द यज्ञ २. थकान लिपि ३. अपशगुन ४. गाथा नई पुरानी ५. मैं कम्बख्त का पाठ किया |
इसके उपरांत मुख्य अतिथियों द्वार सम्भाषण प्रस्तुत किया गया
माननीय श्री कैलाशचन्द्र पंत जी अपने सम्भाषण मे कहते है कवी कि कविताओं को पढने पर पता चलता है की कवि सोच का धनी है और शब्दों के प्रयोग मे कुशल है , और विभिन्न कविताये कवि के संस्कार , समाजिक चिंतन , युवा प्रेम और उद्वेग को दर्शाती है | एक कविता 'दो क्षण' की विवेचना करते हुवे पंत जी कहते है इस कविता का प्रारंभ प्रेमभाव से होता है किन्तु अंत मे प्रेयसि को तुलसी तले दिपक जलाते हुवे प्रेम का विलक्षण विचार कवि के युवा मन के रोपित संस्कार को बताती है |
माननीय श्री देवेन्द्र दीपक जी अपने सम्भाषण स्पष्ट शब्दों मे कहते है की समारोह मे आने के पहले मैने कवि को नही पढा और मैं सोच रहा था की नया कवि , प्रथम संग्रह जाया जाये या नहीं पर यहां आने के बाद और कवि के संग्रह की कुछ कवितायें पढ कर लग रहा है आना व्यर्थ नहीं हुआ |
माननीय श्री राजेन्द जोशी जी अपने सम्भाषण मे कहते है एक अहिन्दीभाषि कवि से इस प्रकार की कविताओं की आशा नहीं थी अत: कुछ त्रुटियों को छोडा जा सकता है | कवि शब्दों का अनुठा प्रयोग करने का साहस रखता है , ये थकान को लिपि की तरहा परिभाषित करता है , कृष्ण को भी याद करता है और तुलसी तले दिप जलाती प्रेयसी की भी कल्पना करता है , चन्दा मामा को हि-मेन के आगे चुका हुवा देखने की पिडा व्यक्त करता है, ग़म को जश्न की तरहा मनात है और रहस्यवाद का भी कविता मे पोषण करता है एवं कुछ प्रयास हिन्दी ग़ज़ल को लेकर भी करता है तो कुल मिलाकर कवि का आने वाल कल उज्वल दिखता है |
एवं अंत मे मेरे पिताजी श्री अरविन्द खोडके जी द्वार आभार प्रकट किया गया तथा मेरे नाना , नानी एवं दादी को मंच पर मुझे आशीर्वाद देने के आमंत्रित किया गया एवं कार्यक्रम की संचालक श्रीमति साधना शुक्ला जी का सम्मान मेरी माताजी श्रीमती किरण खोडके द्वारा किया गया |
समारोह के अंत मे पुस्तक को विक्रय के लिये रखा गया |
स्नेही मित्रों से निवेदन है की यदी वो भी पूस्तक की प्रति चाहते हो तो कृपया ७०/- रुपये (पुस्तक का मुल्य) का डि.डि अथवा मनिआर्डर भेज देवें , पते के लिए मुझे मेल करे, प्रेषण का खर्च मैं स्वयं वहन करुंगा |धन्यवाद
ऋषिकेश खोडके "रुह"